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नेत्रहीन होने के कारण हम दोस्त बने, पर वह कैसा दोस्त जो आपका शोषण करे?

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मोनिका सिन्हा:

उस वक्त यह अनुभव हुआ कि वास्तव में दोस्ती करना एक विक्लांग व्यक्ति के लिए सौदा बन जाता है, जब मैंने खुद उस पल को जिया।

मेरी यह दोस्ती ट्रेन से शुरू होकर जेल तक आकर खत्म होती है, क्योंकि यह दोस्ती एक ऐसा घिनौना रुप धारण कर चुकी थी जहाँ एक असहाय और मजबूर लड़की की भावनाओ के साथ बार-बार नही बल्की हजारों बार खेला गया।
2009 का समय था जब मैं अपने नए जीवन की शुरूआत के लिए दिल्ली आ रही थी, तभी एक हमसफर मेरी माँ को इस बात के लिए आश्वस्त करता है कि दिल्ली मे वह मेरी पूरी मदद करेगा। वह हमसफर एक नेत्रहीन था और जीवन के 14 वर्ष बिताकर दृष्टीहीन हुई बेटी की माँ, उस हमसफर के झाँसे में आ जाती है, केवल इसी उम्मीद के साथ कि एक अंजान शहर में उसकी बेटी को उस हमसफर से शायद पढ़ाई में कुछ मदद मिल जाए।

लेकिन दोस्ती जैसे पवित्र  रिश्ते के पीछे छिपे उस इंसान के घिनौने मनसूबों ने जहाँ एक माँ की उम्मीदों  को कुचला वहीं उस लड़की के मन मे दोस्त और दोस्ती की ऐसी छवि बना दी कि, आज भी उन दोनो शब्दों के बारे  मे सोचकर उसका हृदय कांप जाता है। दोस्ती का शुरूआती दौर पढ़ाई के लिए अध्ययन सामाग्री के लेन-देन तक ही सीमित था। बाद में आगे चलकर हमारी दोस्ती गहराती गयी और आखिरकार एक दिन ऐसा आया जब मुझे यह पता चला कि, वो लड़का मुझे पसंद करता है। लेकिन मैंने उसके प्रस्ताव को अत्यंत सरलता से यह कहते हुए ठुकरा दिया कि, ऐसे किसी प्रस्ताव को स्वीकार करना मेरी उम्र के अनुरूप नही है क्योंकि मैं एक स्कूल की छात्रा हूँ और मेरे घर वाले मेरी इस तरह की हरकत को कभी पसंद नही करेंगे, क्योंकि मैं उन्हें बहुत से सपने दिखाकर और अपने साथ एक बड़ा लक्ष्य लेकर दिल्ली आयी हूँ। इसके बाद दोस्ती थोड़ी आगे बढ़ी लेकिन इस दोस्ती में मौजूद उसका एकतरफा प्यार मेरे लिए काफी महंगा साबित हुआ क्योंकि उसके एकतरफा प्रेम ने जहाँ मेरे चरित्र को बार-बार लांछित किया वहीं मेरा सम्पूर्ण सामाजिक जीवन एकांतता के मजधार में आ खड़ा हुआ जहाँ मेरे सारे दोस्तो ने मेरा साथ छोड़ दिया।

उसका एकतरफा प्यार आगे चलकर उस दरींदिगी में बदल गया जहाँ उसे मेरी दूसरों से दोस्ती और दूसरों से बात करना बिल्कुल पसंद नही था। जब भी मैंने कभी उसकी इस हरकत का विरोध किया तो मुझे डराने के लिए वह कभी मेरी सहेलियों को फोन करके उन्हें गालियाँ देता था, तो कभी उनके घर पर फोन करके मेरी और मेरी सहेलीयों के चरित्र को लेकर गन्दी बातें सुनाता था। इसके साथ ही मुझे डराने के लिए वो मेरे हॉस्टल में फोन करके मेरी वार्डन से भी यही कहता कि मैं एक चरित्रहीन लड़की हूँ। वह दरिंदा  इन सारे कार्यों को इसलिए अंजाम दे रहा था क्योंकि मेरे पास उसकी आई.डी. का सिमकार्ड था और इस वजह से वह बड़ी ही आसानी से मेरे कांटेक्ट डीटेल्स निकलवा लेता था।

मैं उसकी इन दरिन्दिगियों को केवल इसलिए सहन कर रही थी, क्योंकि वो मुझे लगातार यही धमकी देता था कि वह  मेरे कॉलेज ओर हॉस्टल में फोन करके मुझे एक चरित्रहीन लड़की बताएगा और मुझे कॉलेज हॉस्टल से निकलवा देगा। उसकी इन हरकतों को मैं  इसलिए भी सहन कर रही थी क्योंकि एक छोटे शहर से आने के कारण मैं काफी डरती थी और यह बात घर वालों को बताने में  इसलिए डरती थी कि कहीं वो मुझे घर ना बुला लें और अगर मैं घर चली जाती तो शायद मुझे दोबारा ना दिल्ली भेजा जाता और ना ही कभी मैं आगे पढ़ पाती ओर अंधकार भरा मेरा जीवन सदा के लिए अंधेरों के गर्त में ही दफन होकर रह जाता।

यही सब सोचकर मैंने कभी घरवालों से यह बात साझा करने की हिम्मत नही की। लेकिन मेरी यही सोच उस लड़के की दरींदिगी को और अधिक बढ़ाने में काफी मददगार साबित हुई। उसकी वो दरिंदगी इस हद तक बढ़ गयी कि, उसने मुझ पर कई बार हाथ उठाया, तो कभी सड़क पर मेरे बाल खींचे तो कभी कॉलेज में आकर छाती पर घूंसा मारा और जब भी मैंने कभी उसका विरोध करना चाहा तो मुझे हमेशा यही धमकी मिलती कि घर, कॉलेज, हॉस्टल, प्रिंसिपल, और वार्डन को फोन कर दूंगा, और ऐसी ही धमकियां उसके खिलाफ बार-बार उठने वाले मेरे कदमों को रोक देती थी।

उसकी ये दहशत भरी दरींदिगी लगभग 4 सालों तक चली। इन 4 सालों में मेरे लिए यह समझ पाना बहुत  मुश्किल हो गया था कि, क्या उस दरींदे ने सचमुच मुझसे कभी प्यार किया था, या फिर एक डरी-सहमी और कमजोर दृष्टिहीन लड़की की मजबूरी का फायदा उठा रहा था। अपने जीवन के इस पूरे दौर में मैने ऐसी कठिनाईयों और संघर्षों को सिर्फ देखा और सहा लेकिन कभी उसका सामना नही कर सकी और इसके पीछे एकमात्र वजह थी मेरी दृष्टिहीनता और उससे जुड़ी मेरी मजबूरियाँ। जीवन के इन 4 सालो में मुझे एक ही चीज सीखने मिली कि विकलांगता वास्तव में दोस्त ओर दोस्ती दोनों के मायने बदल देती है, क्योंकि ये दोनों ही एक विकलांग व्यक्ति को मजबूरी, परेशानी, बदनामी और आँसूओं के अलावा और कुछ नही देती।

आज मुझे किसी से भी दोस्ती करने में डर लगता है और इसकी वजह मेरे मन में दफन उस दरिन्दे का खौफ है। यह सच है कि इस विकलांग समाज ने मुझे बहुत कुछ दिया है, लेकिन शायद मुझमें ही कुछ कमी रही होगी कि मुझे इस समाज से कोई अच्छा दोस्त ना मिल सका। इस समाज में आकर जहाँ एक ने दोस्त बनकर मेरी मजबूरी का फायदा उठाया वहीं कुछ ऐसे दोस्त भी मिले जिन्होंने उस वक्त मेरा साथ देने से इंकार कर दिया जब मैं उस दरिंदे के शिकंजे से बाहर आने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही थी। लेकिन यहाँ भी धोखा ही मिला। आखिर में मन में सिर्फ एक ही बात बस गयी है कि, दोस्त के रूप में मुझे जो शैतान मिला उसने सचमुच मुझे आँखों के साथ-साथ दिमाग से भी अंधा कर दिया था क्योंकि उन 4 सालों में मैं उसके खिलाफ कुछ भी नही कर सकी और ना ही अब कुछ कर पा रही हूँ।

The post नेत्रहीन होने के कारण हम दोस्त बने, पर वह कैसा दोस्त जो आपका शोषण करे? appeared first and originally on Youth Ki Awaaz, an award-winning online platform that serves as the hub of thoughtful opinions and reportage on the world's most pressing issues, as witnessed by the current generation. Follow us on Facebook and Twitter to find out more.


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