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जून की तपती धूप में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के बाहर तकरीबन पांच सौ छात्र भूख प्यास से बेहाल चौबीस घंटे सड़क पर धरना दिए बैठे रहे, जबकि यह समय प्रतियोगिता परिक्षाओं की तैयारी करने वाले इन छात्रो के लिए बेहद कीमती और कॉलेजो में एडमिशन की दौड़ धूप के लिए छात्रों का सबसे अहम समय होता है | इस पूरे धरना प्रर्दशन को अगर छात्र समस्यार के नज़रीए से ना भी देखा जाए तो भी इस असंतोष और धरने का कारण दिल्ली् में लम्बे् समय से चली आ रही मकान किराए में अनियमित बढ़ोतरी, और प्रापर्टी दलालों का शोषण चक्र, इसके मूल में है |
[caption id="attachment_50544" align="aligncenter" width="960"] Image credit: Delhi room rent control movement[/caption]
के आसपास के इलाकों या कोचिंग संस्थानों के नज़दीक के इलाकों में मकान किराएदारी की ये समस्या हमेशा से बनी रही है | वजह साफ है छात्र अपनी सुविधा एंव समय की बचत के हिसाब से इन इलाको को अपनी प्राथमिकता देते हैं | मगर दिल्ली में अभी तक मकान किराए को लेकर कोई ऐसी पुख्ता व्यवस्था नहीं है जो तार्किक और नियमानुसार हो | इस कड़ी में सबसे पहला मसला मकान किराए में बेतहाशा बढ़ोतरी है जो साल की दरों से ना बढ़ कर महीनों की दरों से बढ़ाई जा रही है | और इस बढ़ोतरी को व्यवस्थित रूप से अंजाम देने का काम प्रापर्टी डीलरों और कमीशन दलालों के जरीए बखूबी निभाया जा रहा है | दिल्ली विश्विधालय एंव उसके आस पास के इलाकों में एक कमरे के लिए दस से बारह हज़ार रूपया किराया वसूला जा रहा है जिसमें छात्रों को एक महीने के किराए की रकम के बराबर रूपये कमीशन दलाल को देने पड़ते है | [envoke_twitter_link]कमरो का किराया तय करने या उनको बढ़ाने का कोई पैमाना यहां पर काम नहीं करता है[/envoke_twitter_link] |[envoke_twitter_link] इसलिए किराए की दरें भी मनमाना तरीके से तय की जाती हैं[/envoke_twitter_link] |
ये सिलसिला यहीं तक खत्म नहीं हो जाता मकान मालिक प्रत्येत महीने आठ से दस रूपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली बिल किराए में जोड़ कर किराया वसूल करते है | मकान मालिक और कमीशन एजेंट के गठजोड़ ने छात्रों के शोषण् क्रम में एक युक्ति और खोज निकाली है जिसमें हर दूसरे तीसरे महीने मकान मालिक कमरे का किराया बढ़ाता है | ऐसी सूरत में या तो छात्र सर नवा कर किराया बढ़वा लेता है या तत्काल कमरा खाली कर एक बार फिर कमीशन एजेंट की जेबें गर्म कर बढ़े किराए के साथ रहने को अभिशप्त है |
मकान मालिको का नज़रीया है कि ये छात्र् इतने सक्षम है कि दिल्ल्ाी में अाकर पढ़ाई कर रहे हैं तो किराया देने में इनको किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं आनी चाहिए | पूरे छात्र् समुदाय के आर्थिक पुष्टभूमि का सामान्यीकरण्ा कर पूरे हक और ठसक के साथ मकान मालिक किराया वसूलते है , ऐसी स्थिति में खासकर उन छात्रों के लिए किराए पर कमरा लेना जान पर बन आती है जो गरीब एंव आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से संबंध रखतें है |
[envoke_twitter_link]कमीशन दलाली की इस व्यवस्था की पहुंच कानूनी अहलकारों तक भी है[/envoke_twitter_link] | सवाल चाहे किराएदार के पुलिस वैरीफिकेशन का हो या रेंट एग्रीमेंट का हर मसले का गैरकानूनी हल कानूनी तरीके से निकालना कमीशन दलाल के लिए आसान है | एक अच्छीं रकम के नजराने के साथ बिना रेंट एग्रीमेंट लगाए किराएदारों का पुलिस वैरीफिकेशन दिल्ली पुलिस के ज़रीए करवा लेना कमीशन एजेंटो के लिए कोई मुश्किल बात नहीं है | यहां गौर करने लायक बात ये है कि मकान मालिक या कमीशन एजेंट कभी किसी भी तरह का कोई रैंट एग्रीमेंट किराएदार छात्र से नहीं करवातें है ऐसी स्थिति में कमीशन एजेंट और मकान मालिक के हाथ में अधिकार रहता है कि किसी भी समय वो किराएदार से मकान खाली करने के लिए कह सकता है और किराएदार से कमरा खाली करवाने में अगर मुस्तैद दिल्ली पुलिस अपनी सेवा प्रदान करती है तो ये कानूनन नाजायज़ भी नहीं होता |
इस पूरे गोरखधंधे का विरोध करने और इसकी समाप्ति के लिए छात्र लगातार दिल्ली रैंट कंट्रोल एक्ट लागू करने की मांग दिल्ली सरकार से कर रहें है जो सन 1958 पारित किया गया था जिसको बाद में 1995 में संशोधित भी किया गया है | लेकिन सरकार की तरफ से आश्वासन के अलावा अभी तक कोई ठोस कार्यवाही को अंजाम नहीं दिया गया है | सरकार की तरफ से किसी ठोस कार्यवाही की उम्मीेद में छात्रो का संघर्ष् उसी तरह जारी है, मगर छात्रो के शोषण में किसी तरह की कोई कमी अभी तक नहीं आयी है, ये हकीकत भी अपने पूरे वजूद के साथ कायम है |
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